शास्त्रों में लक्ष्मी साधना के साथ –साथ कुबेर के ध्यान का भी उल्लेख है | कुबेर ,लक्ष्मी द्वारा प्रदत्त धन-वैभव को अनंतकाल तक संरक्षित रखते है | ऐसा इसलिए है क्योंकि जिस प्रकार जल ,वायु एवं अग्नि आदि देवता होते है ,उसी प्रकार धन-धान्य ,वैभव ,यश के अधिष्ठाता कुबेर है |
जैसा कि हम सब जानते हैं कि देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर है और यह देवता न होकर यक्ष है इसलिए इसकी साधना सहज है ,दूसरी बात यह भी है कि शिव का कृपापात्र होने के कारण साधना से प्रसन्न होने वाले भी हैं | अनुभव में आया है कि लक्ष्मी मंत्र की उपासना में धन प्राप्ति होती है पर वह जब चाहे जा सकती है इसलिए लक्ष्मी की किसी देवता के साथ साधना करनी चाहिए |जैसे लक्ष्मी नारायण,लक्ष्मी – नृसिंह ,स्वर्णाकर्षण भैरव आदि |लक्ष्मी का वैभव ,सम्पन्नता और प्रचुरता का गुण गणपति इस युग के लिए सर्वाधिक अनुकूल एवं सुगम देवता है |
भगवान शंकर की साधना करने के पश्चात रावण को इस कुबेर मंत्र ज्ञान भगवान शंकर ने कराया था | कोई व्यक्ति यदि पीढ़ियों से दरद्रिता तथा अभाव से अक्रांत है तो भी इस कवच के धारण करने से दरिद्रता दूर होती है तथा सम्पन्नता की प्राप्ति होती है | अपार धन,वैभव ,सम्पति , सम्पदा, प्रतिष्ठा , सुख ,विलासिता तथा भवन , वाहन , आभूषण , नौकर , रत्न , भूखण्ड आदि प्राप्त होते है |कौटिल्य ने एक स्थान पर लिखा है कि कुबेर की मूर्ति खजाने में स्थापित की जानी चाहिए |
इतिहास पुराणों के अनुसार राजाधिराज धनाध्यक्ष कुबेर समस्त यज्ञों , गृहस्थों और किन्नरों – इन तीन देवयोनियों के अधिपति कहे गए है | ये नवनिधियों – पद्म , महापद्म , शंख , मकर , कच्छप , मुकुंद ,कुंद , नील और वर्चसू के स्वामी है | एक निधि भी अनन्त वैभवों की प्रदाता मानी गयी है और राजाधिराज कुबेर तो गुप्त , प्रकट संसार के समस्त वैभवों के अधिष्ठाता देवता है | जैसे देवताओं के राजा इंद्र है ,गुरु बृहस्पति है ,उसी प्रकार कुबेर निखिल ब्रह्माण्डों के धनाधिपति होते हुए भी प्रधान रूप से देवताओं के धनाधय्क्ष के रूप में विशेष प्रसिद्ध हैं |महाराज वैश्रवण कुबेर की उपासना से सम्बंधित मंत्र ,यन्त्र ध्यान एवं उपासना आदि की सारी प्रक्रियाएँ श्रीविद्यार्णव , मंत्रमहार्णव , मंत्रमहोदधि श्रीतत्वनिधि तथा विष्णुधर्मोत्तरादी पुराणों में निर्दिष्ट हैं|नव –निधियां – भारतीय संस्कृत धर्म एवं आध्यात्म से जुड़ी हुई है |भारत का बच्चा –बच्चा अध्यात्मिक धरोहर पर गर्व करता है |यह देश साधु-संतो एवं तपस्वि – यों का देश रहा है |यहाँ का वातावरण ही अध्यात्ममय है , यही कारण है की यहा का बच्चा –बच्चा बाल्यकाल से ही विभिन्न देवी –देवताओं ,विभिन्न ऋधि्दयो ,सिद्धियों आदि की कथाएँ सुनते हुए बड़ा होता है |अष्ट – सिद्धियों एवं नव –निधियां बहुत प्रसिद्ध है |कहा जता है की नव निधियां कुबेर के खजाने में सर्वदा विराजमान रहती है |जिसे यह नवनिधियां प्राप्त हो जाये उसका तो जीवन मानो सफल हो गया |यह नवनिधियां कौन – कौन सी होती है और इनके प्राप्त होने से व्यक्ति के जीवन में किस प्रकार के परिवर्तन आते है आईए देखते है |
‘महापद्मश्च पद्मश्च शंखों पर मकर कच्छपै |
मुकुन्द कुंद निलश्च खर्वश्च निधियोनव ||’
नव निधियाँ –“पद्म ,महापद्म ,नील, मुकुंद, नन्द ,मकर ,कच्छप,शंख ,खर्व |अब इन नव निधियोंके लक्षण जानने के पूर्व यह जान लें की निधि का तात्पर्य क्या है ? संस्कृत व्याकरण के अनुसार निधि (नि +धा+कि )शब्द ‘नि’ उपसर्ग ‘धा’ धातु तथा की प्रत्यय के मल से बनता है जिसका अर्थ आश्रय ,आधार ,घर ,भंडार ,आगार ,संचय आदि होता है |
१ )पद्म निधि –खर्व निधि को छोड़कर शेष आठ निधियां पद्मिनी नामक विद्या के सिद्ध होने से प्राप्त होती है |पद्मिनी का अर्थ लक्ष्मी होता है उसके कारण निधिया व्यक्ति के धन का अवलोकन करती रहती है ,जिससे समृद्धि निरंतर बढ़ती ही रहती है |पद्म निधि युक्त मनुष्य जीवन भर संपन्न रहता है फिर उसके पुत्रों ,पौत्रों ,प्रपौत्रों के अधीन भी वह निधि चलती रहती है |उनका कार्य –व्यापार खुब चलता है |वह धार्मिक कार्य यज्ञादि संपन्न करता है |जनहित के कार्यो में संलग्न रहता है तथा विपुल दक्षिणा देता है |वह बड़े एकाग्रचित से धर्मस्थलों का निर्माण करता है |उसकी क्रमशः सभी अभिलाषाएं पूरी होता है |
२)महापद्म निधि –यह भी सात्त्विक निधि है |अतः इससे युक्त व्यक्ति सत्वगुण संपन्न होता है | इस निधि से संपन्न स्वयं योगी होता है | कई बार यह निधि बड़े मठाधिपतियों को भी प्राप्त हो जाती है |इस निधि से संपन्न लोगों के पुत्र, पौत्र प्रपौत्रों ,शिष्य ,प्रशिष्य भी निधि संपन्न होता है
३)नील निधि –यह निधि सत्व एवं रजो गुण दोनों से मिश्रित निधि है अतः इससे युक्त व्यक्ति का स्वभाव एवं आचार , विचार भी सात्विक तथा राजस दोनों गुणों से युक्त रहता है |इस निधि की दृष्टी जिस मनुष्य पर पड़ती है वही इस निधि से संपन्न हो जाता है |वह सार्वजनिक हित के कार्य करता है | वृक्षारोपण करता है | सुगंधियो को धारण करता है |
४)मुकुंद निधि –यह मुकुंद निधि राजसी स्वभाव वाली होती है |वह मनुष्य रजोगुण से युक्त होता है |उसे संगीत , गायन ,वादन का शौक होता है | न्रित्याकारों ,अभिनेताओं तथा गन्धर्वो को यह निधि बहुत फल देती है |५)नन्द निधि –यह निधि रजोगुण तथा तमोगुण इन दोनों से मिश्रित होने से जिस पर इस निधि की दृष्टी पड़ती है उसका स्वभाव राजस एवं तामस होता है उसे समस्त धातुएं ,रत्न एवं धान्य प्राप्त रहते है |वह मृदु स्वभाव युक्त होता है |तथा उसका दांपत्य जीवन सुखी रहता है |इनका वंश फलता फूलता है | यह निधि आश्रित पुरुष की दीर्घायु करती है | ऐसे मनुष्य की ख्याति बहुत दूर तक होती है |
६)मकर निधि –यह तामसी निधि है | अतः जिस पुरुष में इसका अधिष्ठान होता है वह तमोगुण प्रधान किन्तु सुशील होता है |यह अपने साथ सदैव शस्त्र रखता है| भोज्य पदार्थो के स्वाद का सूक्ष्मता से ज्ञान करने की क्षमता से युक्त होता है |वह राजनेताओं एवं शासक वर्ग से मित्रता रखता है |शूरवीरों से भी मित्रता रखता है |उनका संग्रह भी पर्याप्त करता है |
७)कच्छप निधि – जिस मनुष्य में यह तमोगुणी निधि अधिष्ठत रहती है वह किसी का विश्वास नहीं करता है |वह अपनी सम्पति आदि को सबसे छिपाकर रखता है |उसे सदैव अपने धन वैभव की विस्तृत करने की चिंता लगी रहती है |
८)शंख निधि –यह रजोगुण युक्त निधि तमोगुण से भी युक्त होती है | ऐसा व्यक्ति स्वयम् के पराक्रम से उपार्जित धनादि का उपभोग करता है ,संचय करता है |
९)खर्व निधि –खर्व का अर्थ विकलांग ,अपाहिज आदि होता है अतः इस तामसी निधि से संपन्न व्यक्ति विकलांग ,हिनाग या अधिकांश (छिंगा )या छोटे कद का होता है | वह बहुत घमंडी होता है | यह अपने प्रदर्शन खूब करता है लकिन बहुत वैभवशाली ,संपन होता है |इस प्रकार ये कुबेर देव की नौ निधियां मनुष्यों की अर्थ देवता कही गयी है | सात्विक निधियां दुर्लभ है | राजसी निधि या कुछ न्यून (दुर्लभ )है |तामसी निधियां ही अधिक पायी जाती है किसी किसी व्यक्ति पर दो या उससे अधिक निधियों की दृष्टी भी हो सकती है | तो फिर आप भी इन्हें प्राप्त करने का प्रयास अवश्य करे |